‘चला जाता हूँ किसी की धुन में धडकते दिल के तराने लिए..’ नही मैं कोई गाने की धुन नही बनाने जा रहा, मैं तो बस पुरानी वाली धुन गुनगुनाता हुआ घर जा रहा था. इससे पहले की धुन ख़तम होती की पड़ोस के एक दोस्त से मुलाकात हो गई. हालाँकि वो उलटी तरफ जा रहे थे पर हम भी ठहरे वेल्ले आदमी, हो लिए उनके साथ.
‘अमा क्या यार आप तो मेरे पीछे ही पड़ गए’, मुझे अपने साथ चलता हुआ देख वो बोल पड़े.
‘आप क्या कोई हूर पारी हैं जो हमारे जैसा गबरू जवान आपके पीछे पद जाये , मिया हम तो हूर परियों को भी भाव न दें इसके लिए मशहूर रहे हैं’ हमने अपना दाव छोड़ा तो जनाब कुछ बोल ना सके.
तो हम ही कोई बात छेड़ते हैं , मैंने कहा , और इससे पहले की वो इंकार करते मैंने पूछा वैसे इतनी जल्दी में कहाँ को चले जा रहे थे अकेले अकेले ?
हम नही बताएँगे वर्ना उसमे भी आप कोई बाल की खाल निकाल कर हमारा मजाक उड़ने की कोशिश करेंगे .
अरे सरकार आपने सुना नही की लहरों से डरने वाली नाव कभी पार नही होती , और मेहरबान कदरदान कोशिश करने वालों की हार नही होती . खैर वो जाने दीजिये ये आपकी समझ से परे है , आप तो बस हमारे सवाल का जवाब दे दीजिये उतना की काफी है .
बाज़ार जा रहे थे सब्जी लेने .
इतना सुनना था की मुझसे रहा नही गया , भाई मान गए आपको , बहोत खूब , कूट कूट के हौसला भरा है आपमें और अगर मैं कहूँ की आप काफी रईस घराने से ताल्लुक रखते हैं तो इसमें ज़रा भी ज्यादती नही होगी . माशाल्लाह दाद देनी पड़ेगी आप की तो . शायद ही कभी किसी ने उनकी इतनी तईफों के पुल बंधे होंगे , इसीलिए तो जनाब के होंठ उनके कानो को छूने लगे थे .
अब आप कह रहे हैं तो हो सकता है की ये सच हो पर अच्छा होता की आप खुद ही इस राज़ से पर्दा उठा दें .
इसी मौके की तो तलाश थी हमें . बिलकुल बिलकुल , आखिर हम पैदा ही इसलिए हुए हैं ताकि हर वो बात जो आपके सर के ऊपर से निलकल गई हो , आपको समझा सकें .
मालिक अब चेप भी दीजिये .
बेशक बेशक , हाँ तो माजरा ये था की आप चले सब्जी खरीदने , बाज़ार , वो भी अकेले , अब हम आपको ये याद दिला दे की जो सब्जियों के दाम हैं आजकल ना वो पुराने ज़माने जैसे तो रह नही गए हैं . यहाँ तक की मामूली शब्द भी मामूली नही रह गया , महंगा हो गया है , क्यूंकि उसमे भी मुली शब्द आता है . तो भाई मेरे हुए ना तुम रईसों के खानदान के .
हमें पता था आप कोई आम इंसान तो हैं नही की आपसे मैं उम्मीद करूँ की साधारण सी भाषा में जवाब देंगे पर वो हौसले वाली बात अब भी मेरी समझ में नही आई .
शायद ये उनकी बदकिस्मती है की हमारी जगह कोई मोहतरमा नही हैं वर्ना हमें यकीन है की वो उनकी इस मासूमियत पे मर मिटती, खैर हमने सीधे सीधे जवाब देना जादा बेहतर समझा .
देखिये , अब अकेले सब्जी खरीद कर ला रहे होंगे , और रास्ते में किसी के दिल में इतनी कीमती चीज़ देख कर खोट आ गया और आप पर हमला कर दिया , तो सोचिये , हुए ना आप हौसले वाले …
वाह , आप और आपके ख़यालात , माशाल्लाह , तशाखोर ….
हमसे उनकी और दुर्दशा देखी नही गई तो हमने भी कह दिया , मेरे यार , मेरे दोस्त , गुस्ताखी माफ़ …
अमा ये आप पहले भी कह चुके हैं …
अगर ये बात है तो फिर ये लीजिये …गुस्ताखी माफ़ दोबारा …हाहाहा
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